चटपट बनी मंदिर की 35 एकड़ भूमि में बने जंगल की मिट्टी की जांच करने के लिए अप्रैल में फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून की टीम आएगी। इस टीम की ओर से सिर्फ कुछेक एरिया में कुदरती तौर पर उत्पन्न जंगल की मिट्टी की जांच की जाएगी। इस मिट्टी से पता लगाया जाएगा कि आखिरकार इसमें ऐसे कौन से पदार्थ है, जिससे इसमें बेहद कीमती जंगली जड़ी बुटियां उत्पन्न हो रही हैं। इसके साथ ही बेहद घने इस जंगल में लगे पेड़ों के कारणों का पता लगाने का भी प्रयास किया जाएगा।
पौराणिक काल से दंत कथा के अनुसार इस जमीन के कुछेक हिस्से में बेहद घना जंगल रातों-रात किसी साधु के श्राप के बाद बन गया था। इस जंगल के बाहर एरिया में सामान तौर पर ही कृषि योग्य भूमि है। वन विभाग की ओर से इस जमीन की मिट्टी की जांच करवाने के पीछे एक अन्य कारण पिछले दिनों घटित हुआ मामला भी है। कुछ दिन पहले एकाएक ही इस जंगल में स्थित कुछेक पेड़ों से खुद व खुद धुआं निकलना शुरू हो गया था। इसके कारणों को जांचने के लिए मंदिर कमेटी व वन विभाग की टीम भी मौके पर गई थी, परंतु वे इस बात को जानने में असमर्थ रही कि आखिरकार इस धुएं का कारण क्या है। बाद में पेड़ों से निकलने वाला धुआं बंद हो गया। बताया जा रहा है कि इस धुएं के कारणों को जांचने के लिए भी वन विभाग बेहद लालायित है।
जंगली लकड़ी को जलाने पर कोयला न बनना भी बेहद आश्चर्य
डीएफओ डाक्टर संजीव तिवारी ने बताया कि इस जंगल में जहां कीमती वन्य संपदा है वहीं कई अन्य तरह के कारण भी है। उन्होंने कहा कि सबसे हैरानी करने वाली बात तो यह है कि इस जंगल की लकड़ी को जलाने के बाद कोयला नहीं अपितु राख बन जाती है। इसके अतिरिक्त इस जंगल में खुद व खुद कई तरह की कीमती जड़ी बुटियां है जिनकी तादाद को बढ़ाना भी वन विभाग के लिए बेहद लाभप्रद हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे ही कारणों को जानने के लिए वे इस मंदिर कमेटी के सहयोग से इस वन्य संपदा की मिट्टी की टेस्टिग करवाना चाहते हैं।