अड्डा लगाने की मारा-मारी आखिर क्यों नहीं सुधर रहे अतिक्रमणकारी। यह सवाल अभी तक नगर निगम कर्मचारियों के लिए सिरदर्द ही बना हुआ है। लाख कोशिशों के बावजूद अतिक्रमणकारी निगम के खौफ से बे-खौफ हो चुके है।
बिना किसी परवाह के सरेआम वह अपनी दुकानों का सामान ही बाहर नहीं लगवाते बल्कि कई दुकानदार तो अपनी दुकानों के आगे अड्डा लगाने वालों से वसूली भी करते है।
ऐसा लगता है कि निगम का डंडा इन अतिक्रमणकारियों की मनमर्जी के आगे ठंडा पड़ चुका है। यही कारण है कि मेन बाजार में सड़कों की चौड़ाई दिन प्रतिदिन कम होती चली जा रही है। सडक पर वाहन गुजारना तो दूर पैदल चलना भी राहगीरो के लिए मुश्किल होने लगा है। देखने में यह भी आया कि अड्डा जमाने वाले लोगों को यदि कोई यह कह भी दे कि भाई साहब अपना सामान सडक से थोड़ा पीछे लगाया करें तो वह धौंस जमाने लगते है।
वह धौंस इस कद्र दिखाते है जैसे मानों वह निगम को महीना भरते हो। जब की अंदर की बातों में तो सब गोलमाल ही है। हैरानी है कि आखिर निगम ऐसे अड्डा लगाने वाले अतिक्रमणकारियों पर इतना मेहरबान क्यों है। क्या दाल में कुछ काला तो नहीं, या फिर सारी की सारी दाल ही काली है। तभी तो निगम द्वारा पुलिस बल के साथ छेडा गया अभियान भी इन अतिक्रमणकारियों के आगे घुटने टेकता नजर आता है। हर बार छेडा गया अभियान मात्र खानापूर्ति साबित हो रहा है।
इधर शहर के बुद्ध्रिजीवियों की माने तो निगम यदि चाहे तो एक ही झटके में अतिक्रमणकारियों को खदेड़ कर, उनसे बाजार की सडकों पर जमें अवैध कब्जों से सडकें खाली करवा सकता है।
परंतु इच्छा शक्ति की कमी होने के कारण वह अतिक्रमणकारियों को खदेड्ने से कतरा रहा है। तभी तो अभी तक शहर के प्रत्येक बाजार में अवैध कब्जों की भरमार दिन प्रतिदिन बढती चली जा रही है। उनका कहना है कि निगम को सख्ती बढ़ानी चाहिए और शहर की सड़कों से अतिक्रमणकारियों को हटाना चाहिए।