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सवारियों की जेब पर चलती ऑटो चालकों की आरी

ऑटो चालकों की आरी

सवारियों की जेब पर चलती ऑटो चालकों की आरी

ऑटो चालकों की मनमानी के चलते सवारियां परेशान हैं। दिन में जहां दस रुपये किराया है वहीं रात होते ही यह किराया 150 रुपये तक पहुंच जाता है। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि रात के समय बाहरी क्षेत्र से आए एक यात्री के साथ घटित हो रहा वृतांत है।

पठानकोट कैंट रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर जैसे ही सवारी ने ऑटो चालक से पठानकोट कैंट से बस स्टैंड तक जाने का किराया पूछा तो ऑटो चालक ने बाहर की सवारी जान झट से 150 रुपये किराया बताया।

जबकि वर्तमान में दिन के समय इसी रुट का किराया 10 रुपये प्रति सवारी है। रात के अंधेरे में और क्या-क्या यात्रियों को परेशानियां होती हैं इसे जानने के लिए शहर की सड़कों पर रात का रिपोर्टर निकला तो सर्वप्रथम शहर का ढांगू रोड बिना स्ट्रीट लाइटों के अंधेरे में डूबा हुआ नजर आया। कॉलेज रोड ग्यारह बजे ही सुनसान व अंधकारमय हो चुका था। पठानकोट कैंट जाने के लिए जैसे ही रात का रिपोर्टर मार्केट कमेटी पठानकोट द्वारा एक करोड़ रुपए की लागत से तैयार की गई सड़क पर पहुंचा तो देखा कि सड़क किनारे शिव मंदिर के बाहर दो पुलिस सुरक्षा कर्मी बैठे मोबाइल पर व्यस्त थे। सड़क की भी दयनीय है।

कैंट स्टेशन पहुंचते ही यात्री और ऑटो चालक की बहस होती दिखाई दी। ऑटो चालक सवारी से 10 रुपये के बजाये 150 रुपये की डिमांड कर रहा था, लेकिन जैसे ही यात्री ने अपने आपको सरकारी कर्मचारी बताया तो वह बीस रुपये में मान गया।

लेकिन जब यात्री फिर न माना तो दूसरे ऑटो चालक से पूछा जो दस रुपये में मान गया। ऑटो चालक ऐसे बाहरी यात्रियों से मनचाहा किराया वसूलने के लिए रात-रात भर टैक्सी स्टेंड के बाहर ऑटो खड़े रखते हैं। इसके बाद एक दिव्यांग तिपहियां वाहन पार्किग स्थल पर लगाना चाह रहा था, लेकिन रेलवे ने विकलांगों के लिए पार्किग स्थल का स्थान तो बना रखा है, परंतु इस स्थान तक पहुंचने के लिए जो रास्ता था, उसे लोहे के एंगल लगाकर बंद कर दिया गया था। बंद रास्ते की मुंह बोलती तस्वीरें रेलवे विभाग की अव्यवस्था को खुद ब्यान कर रही थी। रेलवे प्लेटफार्म के अंदर डस्टबिन गंदगी से भरे पड़े थे मानो जैसे महीनों से साफ न किए गए हों।

यात्री प्लेट फार्म पर चेयर व जमीन पर बिस्तर लगाकर, ट्रेनों का इंतजार कर रहे थे। रात का रिपोर्टर सिटी पठानकोट रेलवे स्टेशन की तरफ पहुंचा तो देखा कि गेट पर एक विकलांग नीचे जमीन पर बेसुध पड़ा हुआ था। एक सुरक्षा कर्मी गेट पर तैनात होकर सुरक्षा की दृष्टि से स्टेशन के भीतर और बाहर आने वाले यात्रियों पर नजर रखे हुए था। रात के रिपोर्टर ने जैसे सिटी स्टेशन पर कदम रखा, तो देखा कि प्लेट फार्म नम्बर-3 पर जालंधर के अजीत नगर मोहल्ला किशनपुरा निवासी एक परिवार अंधेरे में ही भोजन कर रहा था। उनसे जब बात की गई तो परिवार में मंदीप ¨सह, लाडा, राजेंद्र कौर ने कहा कि वह जालंधर से डीएमयू ट्रेन में यहां पहुंचे हैं। कांगड़ा में देवी दर्शन के लिए जा रहे है, कांगड़ा घाटी रेलवे स्टेशन से रात सवा दो बजे की ट्रेन है, जिसका इंतजार कर रहे है।

उन्होंने दुख जताया कि सिटी पठानकोट स्टेशन नाम का स्टेशन है। पठानकोट स्टेशन से कांगड़ा घाटी रेलवे स्टेशन की जाने लगे तो देखा कि फुटब्रिज भी पूरी तरह से अंधेरे में डूबा हुआ था। थोड़ा आगे बढ़े तो देखा कि कांगड़ा घाटी रेलवे स्टेशन अंधेरे में डूबा पडा था। यात्री अंधेरे में ही खुले आसमान के नीचे रात काटने को विवश थे। किसी को मच्छर काट रहा था, तो किसी का गर्मी से हाल बे-हाल था।


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